मोह-बंध
मोह-बन्ध हम दोनों एक बार जो मिले रहे फिर मिले, इसे क्या कहूँ : कि दुनिया इतनी छोटी है- या इतनी बड़ी? हम में जो कौंध गयी थी एक बार पहचान, उसी में आज जुड़ी जो नयी कड़ी- क्या कहूँ इसे : इतिहास दुबारा घटित नहीं होता, या वह है पुनर्घटित की एक लड़ी? बिछुड़ जाएँगे फिर हम, फिर भी हार आज को नहीं गिनेंगे, इस को अभी, आज क्या कहूँ : कि जीवन एक मोह है जो साहस को हर लेता है, या कि एक साहस, जो काट रहा है बन्ध मोह के घड़ी-घड़ी?

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