फ़ोकिस में ओदिपौस
राही, चौराहों पर बचना! राहें यहाँ मिली हैं, बढ़ कर अलग-अलग हो जाएँगी जिस को जो मंज़िल हो आगे-पीछे पाएँगी पर इन चौराहों पर औचक एक झुटपुटे में अनपहचाने पितर कभी मिल जाते हैं: उन की ललकारों से आदिम रूद्र-भाव जग आते हैं, कभी पुरानी सन्धि-वाणियाँ और पुराने मानस की धुंधली घाटी की अन्ध गुफा को एकाएक गुंजा जाती हैं; काली आदिम सत्ताएँ नागिन-सी कुचले शीश उठाती हैं— राही शापों की गुंजलक में बंध जाता है: फिर जिस पाप-कर्म से वह आजीवन भागा था, वह एकाएक अनिच्छुक हाथों से सध जाता है। राही चौराहों से बचना! वहाँ ठूँठ पेड़ों की ओट घात बैठी रहती हैं जीर्ण रूढ़ियाँ हवा में मंडराते संचित अनिष्ट, उन्माद, भ्रान्तियाँ— जो सब, जो सब राही के पद-रव से ही बल पा, सहसा कस आती हैं बिछे, तने, झूले फन्दों-सी बेपनाह! राही, चौराहों पर बचना।

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