मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ
मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ? प्रियतम, यदि नितप्रति तेरा ही स्नेहाग्रह-आतुर कर-कम्पन विस्मय से भर कर ही खोले मेरे अलस-निमीलित लोचन; नितप्रति माथे पर तेरा ही ओस-बिन्दु-सा कोमल चुम्बन मेरी शिरा-शिरा में जाग्रत किया करे शोणित का स्पन्दन; उस स्वप्निल, सचेत निद्रा में प्रियतम! मैं कब जागूँ! मैं अमरत्व भला कब माँगूँ!

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