मेरे आरती के दीप
मेरे आरती के दीप! झिपते-झिपते बहते जाओ सिन्धु के समीप! तुम स्नेह-पात्र उर के मेरे- मेरी आभा तुम को घेरे! अपना राग जगत का विस्मृत आँगन जावे लीप? मेरे आरती के दीप! हम-तुम किस के पूजा-साधन? किस को न्यौछावर अपना मन? प्रियतम! अपना जीवन-मन्दिर कौन दूर द्वीप! मेरे आरती के द्वीप!

Read Next