आज तुम से मिल सकूँगा था मुझे विश्वास
आज तुम से मिल सकूँगा, था मुझे विश्वास! आज जब कि बबूल पर भी सिरिस-कोमल बौर पलता- मंजरी की प्यालियों में ओस का मधु-दौर चलता; खेलती थी विजन में सुरभि मलय की साँस। उर भरे उल्लास। प्यार के उन्माद से भर, पंडुकी भी स्वर बदल कर, सघन पीपल-डाल पर से थी बुलाती प्रणय-सहचर- छा रहा सब ओर था अनुराग का कलहास। वह मिलन की प्यास! कल- झुलसते सुमन-जग में वेदना की हूक होगी, निरस, श्री-हत तरु-शिखर पर मूक कोकिल-कूक होगी! खर-निदाघ-ज्वाल में जल जाएगा मधुमास। झूठ कल ही आस! कल- जवानी की उमंगें बिखर होंगी धूल जग में- आज की यह कामना ही चुभेगी बन शूल मग में! भुवन-भर को माप लेगा काल-डग का व्यास। प्रलय का आभास! दूर तुम- हा, दूर तुम- अवसान आया पास, आज प्रत्यय भी पराजित- मैं नियति का दास! आज तुम से मिल सकूँगा था मुझे विश्वास।

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