मैं हूँ खड़ा देखता
मैं हूँ खड़ा देखता वह जो सारस-गति में चली जा रही, मौन रात्रि में, नीरव गति से दीपों की माला के आगे। क्षण-भर बुझे दीप, फिर मानो पागल से हो जागे!

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