प्राण अगर निर्झर से होते
राण अगर निर्झर-से होते पृथ्वी-सा यह मेरा जीवन- तू होता सुदूर वारिधि-सा तेरी स्मृति लहरों की गर्जन; प्रणय! अंक तेरे में खोने मैं युग-युग बहती ही बहती, अथक स्वरों से, अनगिन दिन तक वही बात बस कहती रहती! हा, विडम्बना! हो निर्वाक् नहीं जो कहते-कहते थकती- अब वाणी पा कर भी प्रणय! नहीं तुझ से ही हूँ कह सकती! मुझ में युग-युग हँसते तेरी विपुला आभा के लघु जल-कण प्राण अगर निर्झर-से होते पृथ्वी-सा यह मेरा जीवन!

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