तुम चिर-अखंड आलोक
तुम चिर-अखंड आलोक! तुम खर-निदाघ-ज्वाल की ऊध्र्वंग तप्त पुकार तुम सघन-पावस व्योम से उल्लास धारासार, तुम शीत के विच्छिन्न धूमिल कम्पमय संसार- तुम मधु निशा के विपुल पुलकित प्राण-रस-संचार! तुम समय-वयस सहचर, तुम्हें बाँधे जगत का भार, पर सह-पथिक आदिम अनादि तुम्हीं अपरिमित प्यार। तुम सकल जीवन की तृषा तुम हूक एक सदेह- तुम स्वाति-से चल-तरल किन्तु सदा अचंचल स्नेह! तुम चिर-अखंड आलोक!

Read Next