पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ
जारिन कैसी हूँ मैं नाथ! झुका जाता लज्जा से माथ! छिपे आयी हूँ मन्दिर-द्वार छिपे ही भीतर किया प्रवेश। किन्तु कैसे लूँ वदन निहार-छिपे कैसेे हो पूजा शेष! दया से आँख मूँद लो देव! नहीं माँगूँगी मैं वरदान, तुम्हें अनदेखे दे कर भेंट-तिमिर में हूँगी अन्तर्धान। ध्यान मत दो तुम मेरी ओर-न पूछो क्या लायी हूँ साथ! गान से भरा हुआ यह हृदय-अघ्र्य को चित-तत्पर ये हाथ! पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ!

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