विफले! विश्वक्षेत्र में खो जा
विफले! विश्वक्षेत्र में खो जा! पुंजीभूते प्रणय-वेदने! आज विस्मृता हो जा! क्या है प्रेम? घनीभूता इच्छाओं की ज्वाला है! क्या है विरह? प्रेम की बुझती राख-भरा प्याला है! तू? जाने किस-किस जीवन के विच्छेदों की पीड़ा- नभ के कोने-कोने में छा बीज व्यथा का बो जा! विफले! विश्वक्षेत्र में खो जा! नाम प्रणय, पर अन्त:स्थल में फूट जगाने वाली! एकाकिनि, पर जग-भर को उद्भ्रान्त नचानेवाली! अरी, हृदय की तृषित हूक-उन्मत्त वासना-हाला! क्यों उठती है सिहर-सिहर, आ! मम प्राणों में सो जा! विफले! विश्वक्षेत्र में खो जा! पुंजीभूते प्रणय-वेदने! आज विस्मृता हो जा!

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