एक उदास साँझ
सूने गलियारों की उदासी । गोखों में पीली मन्द उजास स्वयं मूर्च्छा-सी । थकी हारी साँसे, बासी । चिमटी से जकड़ी-सी नभ की थिगली में तारों की बिसरी सुइयाँ-सी यादें : अपने को टटोलतीं सहमीं, ठिठकी, प्यासी । हाँ, कोई आकर निश्चय दिया जलाएगा दिपता-झपता लुब्धक सूने में कभी उभर आएगा । नंगी काली डाली पर नीरव धुँधला उजला पंछी मँडराएगा । हाँ, साँसों ही साँसों में रीत गया अंतर भी भर आएगा । पर वह जो बीत गया- जो नही रहा- वह कैसे फिर आएगा ?

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