आशा के उठते स्वर पर मैं
आशा के उठते स्वर पर मैं मौन, प्राण, रह जाऊँ! आशा, मधु, द्वार प्रणय का-इस से आगे क्या गाऊँ? जीवन-भर धक्के खाये, आहत भी हुए विलम्बित; पर दीप रहे यदि जलता तो शिखा क्यों न हो कम्पित? विश्वात्मा ही यह जाने हम सुखी हुए या असफल; मैं कहूँ कि यदि हम हारे-वह हार बड़ी है कोमल! कर पार समुद्र जीवन का हम पीछे लौट न देखें बढ़ते अनन्त तक जावें इस से गुरु क्या सुख लेखें! आशा, मधु, द्वार प्रणय का-इस से आगे क्या गाऊँ? आशा के उठते स्वर पर मैं मौन प्राण रह जाऊँ!

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