अपने तप्त करों में ले कर
अपने तप्त करों में ले कर तेरे दोनों हाथ- मैं सोचा करती हूँ जाने कहाँ-कहाँ की बात! तेरा तरल-मुकुर क्यों निष्प्रभ शिथिल पड़ा रहता है जब मेरे स्तर-स्तर से ज्वाला का झरना बहता है? क्यों, जब मैं ज्वाला में बत्ती-सी बढ़ती हूँ आगे- अग्निशिखा-से तुम ऊपर ही ऊपर जाते भागे? मैं सोचा करती हूँ जाने कहाँ-कहाँ की बात- अपने तप्त करों में ले कर तेरे दोनों हाथ!

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