किरण अब मुझ पर झरी
किरण अब मुझ पर झरी मैंने कहा : मैं वज्र कठोर हूँ- पत्थर सनातन । किरण बोली : भला ? ऐसा ! तुम्हीं को तो खोजती थी मैं : तुम्हीं से मंदिर गढूँगी तुम्हारे अन्तःकरण से तेज की प्रतिमा उकेरूँगी । स्तब्ध मुझ को किरण ने अनुराग से दुलरा लिया ।

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