व्यथा सब की
व्यथा सब की, निविड़तम एकांत मेरा । कलुष सब का स्वेच्छया आहूत; सद्यःधौत अन्तःपूत बलि मेरी । ध्वांत इस अनसुलझ संसृति के सकल दौर्बल्य का, शक्ति तेरे तीक्ष्णतम, निर्मम, अमोघ प्रकाश-सायक की !

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