प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर!
प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर! दुख से आविल सुख से पंकिल, बुदबुद् से स्वप्नों से फेनिल, बहता है युग-युग अधीर! जीवन-पथ का दुर्गमतम तल अपनी गति से कर सजल सरल, शीतल करता युग तृषित तीर! इसमें उपजा यह नीरज सित, कोमल कोमल लज्जित मीलित; सौरभ सी लेकर मधुर पीर! इसमें न पंक का चिन्ह शेष, इसमें न ठहरता सलिल-लेश, इसको न जगाती मधुप-भीर! तेरे करुणा-कण से विलसित, हो तेरी चितवन में विकसित, छू तेरी श्वासों का समीर!

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