अतिथि से
बनबाला के गीतों सा निर्जन में बिखरा है मधुमास, इन कुंजों में खोज रहा है सूना कोना मन्द बतास। नीरव नभ के नयनों पर हिलतीं हैं रजनी की अलकें, जाने किसका पंथ देखतीं बिछ्कर फूलों की पलकें। मधुर चाँदनी धो जाती है खाली कलियों के प्याले, बिखरे से हैं तार आज मेरी वीणा के मतवाले; पहली सी झंकार नहीं है और नहीं वह मादक राग, अतिथि! किन्तु सुनते जाओ टूटे तारों का करुण विहाग।

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