ओ पागल संसार!
ओ पागल संसार! माँग न तू हे शीतल तममय! जलने का उपहार! करता दीपशिखा का चुम्बन, पल में ज्वाला का उन्मीलन; छूते ही करना होगा जल मिटने का व्यापार! ओ पागल संसार! दीपक जल देता प्रकाश भर, दीपक को छू जल जाता घर, जलने दे एकाकी मत आ हो जावेगा क्षार! ओ पागल संसार! जलना ही प्रकाश उसमें सुख बुझना ही तम है तम में दुख; तुझमें चिर दुख, मुझमें चिर सुख कैसे होगा प्यार! ओ पागल संसार! शलभ अन्य की ज्वाला से मिल, झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल! कब कर पाया वह लघु तन से नव आलोक-प्रसार! ओ पागल संसार! अपना जीवन-दीप मृदुलतर, वर्ती कर निज स्नेह-सिक्त उर; फिर जो जल पावे हँस-हँस कर हो आभा साकार! ओ पागल संसार!

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