कनुप्रिया - समापन
क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु ? लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी ! इसी लिए तब मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी, इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया था तुम्हारे गोलोक का कालावधिहीन रास, क्योंकि मुझे फिर आना था ! तुमने मुझे पुकारा था न मैं आ गई हूँ कनु । और जन्मांतरों की अनन्त पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर खड़ी होकर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ । कि, इस बार इतिहास बनाते समय तुम अकेले ना छूट जाओ ! सुनो मेरे प्यार ! प्रगाढ़ केलि-क्षणों में अपनी अंतरंग सखी को तुमने बाँहों में गूँथा पर उसे इतिहास में गूँथने से हिचक क्यों गए प्रभु ? बिना मेरे कोई भी अर्थ कैसे निकल पाता तुम्हारे इतिहास का शब्द, शब्द, शब्द... राधा के बिना सब रक्त के प्यासे अर्थहीन शब्द ! सुनो मेरे प्यार ! तुम्हें मेरी ज़रूरत थी न, लो मैं सब छोड़कर आ गई हूँ ताकि कोई यह न कहे कि तुम्हारी अंतरंग केलि-सखी केवल तुम्हारे साँवरे तन के नशीले संगीत की लय बन तक रह गई.... मैं आ गई हूँ प्रिय ! मेरी वेणी में अग्निपुष्प गूँथने वाली तुम्हारी उँगलियाँ अब इतिहास में अर्थ क्यों नहीं गूँथती ? तुमने मुझे पुकारा था न! मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर तुम्हारी प्रतीक्षा में अडिग खड़ी हूँ, कनु मेरे !

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