मुनादी
खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का हुकुम शहर कोतवाल का... हर खासो-आम को आगह किया जाता है कि खबरदार रहें और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से कुंडी चढा़कर बन्द कर लें गिरा लें खिड़कियों के परदे और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें क्योंकि एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है ! शहर का हर बशर वाकिफ है कि पच्चीस साल से मुजिर है यह कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए कि मार खाते भले आदमी को और असमत लुटती औरत को और भूख से पेट दबाये ढाँचे को और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को बचाने की बेअदबी की जाय ! जीप अगर बाश्शा की है तो उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ? आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है ! बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर तुम पर छाँह किये रहते हैं और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी मोटर वालों की ओर लपकती हैं कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर; तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर भला और क्या हासिल होने वाला है ? आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए रात-रात जागते हैं; और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं... तोड़ दिये जाएँगे पैर और फोड़ दी जाएँगी आँखें अगर तुमने अपने पाँव चल कर महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर अन्दर झाँकने की कोशिश की ! क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ? वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ गहराइयों में गाड़ दी है कि आने वाली नस्लें उसे देखें और हमारी जवाँमर्दी की दाद दें अब पूछो कहाँ है वह सच जो इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ? हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में इस बुड्ढे की बकवास दब जाए ! नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते फेंक दी है खड़िया और स्लेट इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं और जिसका बच्चा परसों मारा गया वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई सड़क पर निकल आयी है। ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है पर जहाँ हो वहीं रहो यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि तुम फासले तय करो और मंजिल तक पहुँचो इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा सब अपनी-अपनी जगह ठप ! क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है वहीं ठप कर दिया जाए ! बेताब मत हो तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए बाश्शा के खास हुक्म से उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा दर्शन करो ! वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से बहा, वह पुँछ जाए ! बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !

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