एक छवि
छिन में धूप छाँह छिन ओझल, पल पल चंचल- गोरी दुबली, बेला उजली, जैसे बदली क्वार की सुबुक हठीली हरी पर्त में हल्की नीली आग लपेटे - एक कचनार कली दखिन पवन में झोंके लेती डार की लहर-बदन में जिसने आ कर कर दी है छवि और उजागर मेरे छोटे फूलबसे घर, धूपधुली छत, छाँहलिपी दीवार की!

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