संक्रांति
सूनी सड़कों पर ये आवारा पाँव माथे पर टूटे नक्षत्रों की छाँव कब तक आखिर कब तक? चिंतित माथे पर ये अस्तव्यस्त बाल उत्तर, पच्छिम, पूरब, दक्खिन-दीवाल कब तक आख़िर कब तक? लड़ने वाली मुट्ठी जेबों में बन्द नया दौर लाने में असफल हर छंद कब तक? लेकिन कब तक?

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