अगर डोला कभी इस राह से गुजरे
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला, यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, मिलो जब गाँव भर से बात कहना, बात सुनना भूल कर मेरा न हरगिज नाम लेना अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, हँसी में टाल देना बात, आँसू थाम लेना शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं नींद में खो जाये जब खामोश डाली आम की, तड़पती पगडंडियों से पूछना मेरा पता, तुमको बताएंगी कथा मेरी व्यथा हर शाम की पर न अपना मन दुखाना, मोह क्या उसका की जिसका नेह छूटा, गेह छूटा हर नगर परदेश है जिसके लिए, हर डगरिया राम की भोर फूटे भाभियां जब गोद भर आशीष दे दे, ले विदा अमराइयों से चल पड़े डोला हुमच कर, है कसम तुमको, तुम्हारे कोंपलों से नैन में आँसू न आये राह में पाकड़ तले सुनसान पा कर प्रीत ही सब कुछ नहीं है, लोक की मरजाद है सबसे बड़ी बोलना रुन्धते गले से ले चलो जल्दी चलो पी के नगर पी मिलें जब, फूल सी अंगुली दबा कर चुटकियाँ लें और पूछे क्यों कहो कैसी रही जी यह सफ़र की रात? हँस कर टाल जाना बात, हँस कर टाल जाना बात, आँसू थाम लेना यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, अगर डोला कभी इस राह से गुजरे

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