खटमल-मच्छर-युद्ध
'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून। नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून॥ मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली। हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली॥ किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको। नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको॥ हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर। ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर॥ नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई। घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं॥ पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके - त्व्हाणूँ पजन करना होवे तो करो बाहर जाके॥

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