काका के हँसगुल्ले
अंग-अंग फड़कन लगे, देखा ‘रंग-तरंग’ स्वस्थ-मस्त दर्शक हुए, तन-मन उठी उमंग तन-मन उठी उमंग, अधूरी रही पिपासा बंद सीरियल किया, नहीं थी ऐसी आशा हास्य-व्यंग्य के रसिक समर्थक कहाँ खो गए मुँह पर लागी सील, बंद कहकहे हो गए जिन मनहूसों को नहीं आती हँसी पसंद हुए उन्हीं की कृपा से, हास्य-सीरियल बंद हास्य-सीरियल बंद, लोकप्रिय थे यह ऐसे श्री रामायण और महाभारत थे जैसे भूल जाउ, लड्डू पेड़ा चमचम रसगुल्ले अब टी.वी.पर आएँ काका के हँसगुल्ले

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