प्यार-पलाश
प्यार-पलाश खिला फूला है वन में, नहीं ईंट-पत्थर के भव्य भवन में- नहीं नवोढ़ा के कामातुर तन में- नहीं प्रपंचक पूजक जन के मन में। रूप-रंग अनुराग मिला है वन को, हर्षित मुनिवर पेड़ हुए, मुसकाए; पवन प्रमोदित हुआ, प्रवाहित झूमा, पंख पसारे गाते पक्षी प्यारे।

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