तुमने गाए-गीत गुँजाए
तुमने गाए- गीत गुँजाए पुरुष हृदय के कामदेव के काव्य-कंठ से उमड़े-घुमड़े; झूमे, बरसे तुम शब्दों में स्वयं समाए, चपला को उर-अंक लगाए, चले छंद की चाल, सोम-रस, पिए-पिलाए, ज्वार तुम्हारे गीतों का ही ज्वार जवानी का बन जाता, नर-नारी को रख निमग्नकर, एक देह कर एक प्राण कर, प्यार-प्यार से दिव्य बनाता।

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