तुम पडी हो
तुम पड़ी हो शान्त सम्मुख स्वप्नदेही दीप्त यमुना बाँसुरी का गीत जैसे पाँखुरी पर पौ फटे की चेतना जैसे क्षितिज पर मैं तुम्हें अवलोकता हूँ।

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