अन्धकार में खड़े हैं
अन्धकार में खड़े हैं प्रकाश के प्रौढ़ स्तम्भ एक नहीं, हज़ार इस पार--उस पार कुएँ के मौन में डूबे स्तब्ध; भूल में भूली नदी, हंस की चोंच में दबी आकाश में चली जा रही है उड़ी न जाने कहाँ--न जाने कहाँ, रुई ओटती है दुनिया स्वप्न देखती है झुनिया।

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