पड़ने को पड़ गई है
पड़ने को पड़ गई है लाल पर श्याम की सुकेशी छाया उतरने को उतर आया है जलती मशाल पर आषाढ़ का उन्मादी मेघ, घिरने को घिर गया है सदेह स्वप्न के पृष्ठ पर--बाहुओं पर अंधकार, फिर भी लाल है लाल अब भी, श्याम से अविजित मशाल है मशाल, मेघ से अविजित स्वप्न है स्वप्न, अंधकार से अविजित

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