आँख खुली
आँख खुली कर उठा करेजा कड़का। धूल झाड़ कर सोता मानव फड़का। रात ढली दिन हुआ उजेला दौड़ा। ताबड़तोड़ चला, बज उठा हथौड़ा।

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