महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति
कवि! वह कविता जिसे छोड़ कर चले गए तुम, अब वह सरिता काट रही है प्रान्त-प्रान्त की दुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारा मुक्त देश के नवोन्मेष के जनमानस की होकर धारा। काल जहाँ तक प्रवहमान है और जहाँ तक दिक-प्रमान है गए जहाँ तक वाल्मीकि हैं गए जहाँ तक कालिदास हैं वहाँ-- दूर तक प्रवहमान है आँसू-आह-गीत की धारा तुमने जिसको दिया आयुदान और जिसका रूप सँवारा। आज तुम्हारा जन्म-दिवस है कवि, यह भारत चिरकृतज्ञ है।

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