ये साधक
ठाट-बाट के सुविधा-भोगी ये साधक-आराधक धन के निहित स्वार्थ में लीन निरंतर बने हुए हैं बाधक जन के केंद्र-बिंदु पर बैठे-ठहरे चक्र चलाते हैं शोषण के

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