सुनो—
मंत्रियों! मुसकान से या शान से शासन न बदला खद्दरी यश-गान से खलिहान में आयी न कमला पंचवर्षी योजना भी हो रही है आज विफला खेत के हर बीज से है रोगिनी का हाथ निकला माननीयो! कागजी फरमान से सूरज न निकला आबनूसी रात का फैला हुआ काजल न पिघला वोट लेकर चोट करने से हुआ है देश दुबला हाय तुमने आदमी का शीष कुचला वेश कुचला शूरमाओ! पालने में पूतना के अब न झूलो आदमी की खाल ओढ़े आदमी को अब न भूलो शांति के सम्राट मेरे आक्षितिज आलोक उगलो

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