एका का बल
डंका बजा गाँव के भीतर, सब चमार हो गए इकट्ठा। एक उठा बोला दहाड़कर : “हम पचास हैं, मगर हाथ सौ फौलादी हैं। सौ हाथों के एका का बल बहुत बड़ा है। हम पहाड़ को भी उखाड़कर रख सकते हैं। जमींदार यह अन्यायी है। कामकाज सब करवाता है, पर पैसे देता है छै ही। वह कहता है ‘बस इतना लो’, ‘काम करो, या गाँव छोड़ दो।’ पंचो! यह बेहद बेजा है! हाथ उठायो, सब जन गरजो : गाँव छोड़कर नहीं जायँगे यहीं रहे हैं, यहीं रहेंगें, और मजूरी पूरी लेंगे, बिना मजूरी पूरी पाए हवा हाथ से नहीं झलेंगें।” हाथ उठाये, फन फैलाये, सब जन गरजे। फैले फन की फुफकारों से जमींदार की लक्ष्मी रोयी!!

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