राजमंच पर
राग-रंग की छविशाला के राजमंच पर आमंत्रित भद्रों के सम्मुख भृगु-सा भास्वर शासन के ऊपर बैठा बज्रासन मारे वह भव-भारत की जन-वीणा बजा रहा है सागर का मंथन मद का मंथन होता है ऊँचे फन की लहरों के सिर झुक जाते हैं कोलाहल जीवन करता है दिग्गज रोते मस्तक फटते हैं गज-मुक्ता गिर पड़ते हैं

Read Next