तुम!
दोष तुम्हारा नहीं-हमारा है जो हमने तुम्हें इंद्रासन दिया; देश का शासन दिया; तुम्हारे यश के प्रार्थी हुए हम; तुम्हारी कृपा के शरणार्थी हुए हम; और असमर्थ हैं हम कि उतार दें तुम्हें इंद्रासन से-देश के शासन से, अब जब तुम व्यर्थ हो चुके हो- अपना यश खो चुके हो!

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