घना कोहरा
घना कोहरा, छिपा सूरज, गगन ओझल, धरा धूमिल, खड़े खोए पेड़-पौधे, हवा गुमसुम किंतु अब भी, शब्द-शाला में प्रदीपित अर्थमाला सोहती है- मोहती है- छंद से छल-छंद छाया मोचती है, काव्य की अभिव्यक्तियों से भेद भव का खोलती है।

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