कल, दुर्गा की
कल, दुर्गा की भुवन-मोहिनी दिव्य मूर्तियाँ जल-समाधि ले चली गईं संसार से शक्ति-शौर्य-साहस-संगोपन हुआ समर्पित काल को। नगर पुनः अब नगर हो गया पहले जैसा अपनी चाल चला फिर पैसा दाँव-पेंच अधिकाई चक्कर-मक्कर की बन आई।

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