ऊपर गर्जन-तर्जन करते
ऊपर गर्जन-तर्जन करते, मेघ मंडलाकार घहरते, क्षण-क्षण कोप कटाक्ष तड़ित से, भयाक्रांत अम्बर को करते। नीचे, नदिया केन किशोरी, माँ धरती के आँगन में- प्रवहमान है धीर नीर से भरी-भरी, पुलकित लहरों से सँवरी छल-छलना वाले मेघों से नहीं डरी।

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