धूप-धुपाया
धूप धूपाया यह दिन भाया, जैसे हो मेरी ही काया- कविताओं ने जिसे बनाया, जिसको लय से गाया! शाम हुए भी मेरी शाम न होगी! मेरी काया कभी अनाम न होगी!

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