वसिय्यत
मिरे बेटे मिरी आँखें मिरे ब'अद उन को दे देना जिन्हों ने रेत में सर गाड़ रक्खे हैं और ऐसे मुतमइन हैं जैसे उन को न कोई देखता है और न कोई देख सकता है मगर ये वक़्त की जासूस नज़रें जो पीछा करती हैं सब का ज़मीरों के अँधेरे तक अंधेरा नूर पर रहता है ग़ालिब बस सवेरे तक सवेरा होने वाला है (2) मिरे बेटे मिरी आँखें मिरे ब'अद उन को दे देना कुछ अंधे सूरमा जो तीर अँधेरे में चलाते हैं सदा दुश्मन का सीना ताकते ख़ुद ज़ख़्म खाते हैं लगा कर जो वतन को दाव पर कुर्सी बचाते हैं भुना कर खोटे सिक्के धर्म के जो पुन कमाते हैं जता दो उन को ऐसे ठग कभी पकड़े भी जाते हैं (3) मिरे बेटे उन्हें थोड़ी सी ख़ुद्दारी भी दे देना जो हाकिम क़र्ज़ ले के इस को अपनी जीत कहते हैं जहाँ रखते हैं सोना रेहन ख़ुद भी रेहन रहते हैं और इस को भी वो अपनी जीत कहते हैं शरीक-ए-जुर्म हैं ये सुन के जो ख़ामोश रहते हैं क़ुसूर अपना ये क्या कम है कि हम सब उन को सहते हैं (4) मिरे बेटे मिरे ब'अद उन को मेरा दिल भी दे देना कि जो शर रखते हैं सीने में अपने दिल नहीं रखते है उन की आस्तीं में वो भी जो क़ातिल नहीं रखते जो चलते हैं उन्हीं रस्तों पे जो मंज़िल नहीं रखते ये मजनूँ अपनी नज़रों में कोई महमिल नहीं रखते ये अपने पास कुछ भी फ़ख़्र के क़ाबिल नहीं रखते तरस खा कर जिन्हें जनता ने कुर्सी पर बिठाया है वो ख़ुद से तो न उट्ठेंगे उन्हें तुम ही उठा देना घटाई है जिन्हों ने इतनी क़ीमत अपने सिक्के की ये ज़िम्मा है तुम्हारा उन की क़ीमत तुम घटा देना जो वो फैलाएँ दामन ये वसिय्यत याद कर लेना उन्हें हर चीज़ दे देना पर उन को वोट मत देना

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