मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

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