तुनुक मिजाजी नही चलेगी
तुनुक मिजाजी नहीं चलेगी नहीं चलेगा जी यह नाटक सुन लो जी भाई मुरार जी बन्द करो अब अपने त्राटक तुम पर बोझ न होगी जनता ख़ुद अपने दुख-दैन्य हरेगी हां, हां, तुम बूढी मशीन हो जनता तुमको ठीक करेगी बद्तमीज हो, बदजुबान हो... इन बच्चों से कुछ तो सीखो सबके ऊपर हो, अब प्रभु जी अकड़ू-मल जैसा मत दीखो नहीं, किसी को रिझा सकेंगे इनके नकली लाड़-प्यार जी अजी निछावर कर दूंगा मैं एक तरूण पर सौ मुरार जी नेहरू की पुत्री तो क्या थी! भस्मासुर की माता थी वो अब भी है उसको मुगालता भारत भाग्य विधाता थी वो सच-सच बोलो, उसके आगे तुम क्या थे भाई मुरार जी सूखे-रूखे काठ-सरीखे पड़े हुए थे निराकार जी तुम्हें छू दिया तरूण-क्रान्ति ने लोकशक्ति कौंधी रग-रग में अब तुम लहरों पर सवार हो विस्मय फैल गया है जग में कोटि-कोटि मत-आहुतियों में ख़ालिस स्वर्ण-समान ढले हो तुम चुनाव के हवन-कुंड से अग्नि-पुरुष जैसे निकले हो तरुण हिन्द के शासन का रथ खींच सकोगे पाँच साल क्या? ज़िद्दी हो परले दरज़े के खाओगे सौ-सौ उबाल क्या! क्या से क्या तो हुआ अचानक दिल का शतदल कमल खिल गया तुमको तो, प्रभु, एक जन्म में सौ जन्मों का सुफल मिल गया मन ही मन तुम किया करो, प्रिय विनयपत्रिका का पारायण अपनी तो खुलने वाली है फिर से शायद वो कारायण अभी नहीं ज़्यादा रगड़ूंगा मौज करो, भाई मुरार जी! संकट की बेला आई तो मुझ को भी लेना पुकार जी!

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