हरे-हरे नए-नए पात
हरे-हरे नए-नए पात... पकड़ी ने ढक लिए अपने सब गात पोर-पोर, डाल-डाल पेट-पीठ और दायरा विशाल ऋतुपति ने कर लिए खूब आत्मसात हरे-हरे नए-नए पात ढक लिए अपने सब गात पकड़ी सयाना वो पेड़ कर रहा गुप-चुप ही बात ढक लिए अपने सब गात चमक रहे दमक रहे हिल रही डुल रही खिल रही खुल रही पूनम की फागनी रात पकड़ी ने ढक लिए सब अपने गात

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