जाने, तुम कैसी डायन हो
जाने, तुम कैसी डायन हो ! अपने ही वाहन को गुप-चुप लील गई हो ! शंका-कातर भक्तजनों के सौ-सौ मृदु उर छील गई हो ! क्या कसूर था बेचारे का ? नाम ललित था, काम ललित थे तन-मन-धन श्रद्धा-विगलित थे आह, तुम्हारे ही चरणों में उसके तो पल-पल अर्पित थे जादूगर था जुगालियों का, नव कुबेर चवर्ण-चर्वित थे जाने कैसी उतावली है, जाने कैसी घबराहट है दिल के अंदर दुविधाओं की जाने कैसी टकराहट है जाने, तुम कैसी डायन हो !

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