बाघिन
लम्बी जिह्वा, मदमाते दृग झपक रहे हैं बूँद लहू के उन जबड़ों से टपक रहे हैं चबा चुकी है ताजे शिशुमुंडों को गिन-गिन गुर्राती है, टीले पर बैठी है बाघिन पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुँह आप न नोचे! पगलाई है, जाने, अगले क्षण क्या सोचे! इस बाघिन को रखेंगे हम चिड़ियाघर में ऐसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!

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