कनबहरे
कोई नहीं सुनता झरी पत्तियों की झिरझिरी न पत्तियों के पिता पेड़ न पेड़ों के मूलाधार पहाड़ न आग का दौड़ता प्रकाश न समय का उड़ता शाश्वत विहंग न सिंधु का अतल जल-ज्वार सब हैं -     सब एक दूसरे से अधिक                 कनबहरे,                 अपने आप में बंद, ठहरे।

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