उठा कर पटक दिया है तुमने
उठा कर पटक दिया है तुमने मुझ पर धरे अंधकार को पहाड़ के नीचे और वह हो गया है ध्वंस, चकनाचूर और मैं भीतर भी भारहीन-- बाहर भी भारहीन-- स्वच्छंद निकल पड़ने के लिए, रंगीन फौवारे की तरह उछल पड़ने के लिए मैदान में मोर की तरह नाच उठने के लिए अब मैंने जाना तुम्हें मुझ से प्यार है

Read Next