किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक
किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया

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